Monday, December 24, 2012

Remembering Hrishikesh Mukherjee


BornSeptember 30, 1922, Kolkata
DiedAugust 27, 2006, Mumbai


कल नीरज जी के कहने पे "नरम गरम" देखी। ह्रिशि दा की मूवीज का मैं हमेशा से ही फेन रहा हूँ। उनकी मूवीज में हमेशा एक भोलापन एक जुडाव होता है जिसे सायद देहात या मध्यमवर्गीय परिवार में पले बड़े हम जैसे लोग ही महसूस कर सकते हैं। फ़िल्मे जैसे आनंद, बावर्ची, गोलमाल, गुड्डी, चुपके चुपके में मध्यमवर्गीय परिवार का प्यार या परेसानियाँ जैसे इन्होने दिखाया है वैसे किसी ने नहीं। dialogue जैसे "कुसुम गाँव में आके बड़ा मीठा लग रहा है।" या फिर "आपके मूह में हमेशा बोझ की परछाईयाँ रहती हैं आजकल।" कहाँ सुनने को मिलेगा।रिश्तों में जो सहज सरल प्रेम दिखाया गया है। फिर चाहे वो भाइयों का प्यार हो या पिता पुत्री का, या फिर प्रेमी-प्रेमिका का, या एक अनजान स्त्री का एक लड़के के लिए माँ का प्यार। प्रेम इतना "मासूम" शायद ही कहीं और देखने को मिले। शायद प्रेमचंद की कहानियों में या गुलज़ार की त्त्रिवेनियों में। जब शब्द ही काफी थे प्रेम के लिए।
अगर आप अस्सी के दसक के अपने समय को मिस कर रहे हो तो ह्रिशि दा की कोई एक मूवी अवश्य देखें।


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