मुझे इस बात का बड़ा गर्व था की मुझे कभी गुस्सा नहीं है। पर पिछले 1-2 महीनों में अपने पूरी उम्र का quota पूरा कर लिया है। मुझे अब छोटी छोटी बातें भी irritate करने लगी है। मेरा मन अब स्थिर नहीं रहता। सहसा कोई भी ख्याल आ जाता है। कभी मैं अपने आप को दिल्ली में जॉब करता पता हूँ और कभी सुपरमैन की तरह एक ऊँची सी इमारत के ऊपर। bike में बैठे बैठे मैं 1000 अधूरे सपनों को अक्सर पूरा होते देखता हूँ। खुश होता हूँ, उदास होता हूँ, और फिर ऑफिस आ जाता है। ऑफिस एक ऐसी जगह है जो emotions सोख लेती है। शायद SM नहीं होती तो हम अब तक एक जिंदा लाश बन चुके होते। hollywood मूवीज के zombies की तरह। लो! मेरा मन फिर भटक गया।
मुझे लगता है मेरी ज़िन्दगी अब मेरी नहीं रही। हाथ से निकल चुकी है। ठीक किसी काल्पनिक कहानी के उस पात्र की तरह जो सूरज ढलने से पहले एक यात्रा शुरू करता है और फिर कभी वापस नहीं आता।
कभी कभी सोचता हूँ की मेरी ज़िन्दगी का क्या मकसद है! चुपचाप करके ऐसे ही एक एक दिन काट लें। जैसे ज़िन्दगी न हो गयी, मौत का इंतज़ार हो गया।
अब शायद मुझे दूसरों की ख़ुशियों से जलन होने लगी है। facebook पे तो सब ख़ुश ही दीखते हैं। उम्मीद करता हूँ मैं किसी और दुनिया में हूँ। :)
मेरे चेहरे पर भी उम्र झलकने लगी है। कल ही किसी ने अपने नए डिजिटल कैमरे से photo लेके बताया। देख कितना क्लियर आता है इसमें। चेहरे के दाग सारे साफ़ दिख रहे हैं। "दाग अच्छे हैं" कहके मैंने बात टाल दी।
कभी सोचता हूँ ये ज़िन्दगी अगर दोबारा जी पता तो कैसी होती। फिर लगता है इस से बेहतर तो क्या होती।
मुझे येही माँ चाहिए होती। येही भाई बहन और तुम।
\
--- अतुल रावत
No comments:
Post a Comment