सरल और सीधी हिंदी में गुलज़ार कभी कभी हमारी याद, स्वप्न या भावनाओं को शब्द दे देते हैं। ऐसा लगता है ये तो मैंने सोचा था। येही एक अच्छे कलाकार की पहचान है शायद। शब्द दे देना ख्यालों को। और भी ऐसी काफी कवितायेँ या नज़्म है गुलज़ार साहब कि जो मैं पोस्ट करता रहूँगा।
नीचे मेरी पसंदीदा कविताओं/ख़यालों में से एक।
तेरे उतारे हुए दिन
टंगे हैं लॉन(lawn) में अब
तक
न वो पुराने
हुए हैं
न उन का
रंग उतरा…
कहीं से कोई
भी सीवन अभी
नहीं उधड़ी
इलाइची के बहुत
पास रखे पत्थर
पर
ज़रा सी जल्दी
सरक आया करती
है छाँव
ज़रा सा और
घना हो गया
है वो पौधा
मैं थोड़ा थोड़ा वो
गमला हटाता रहता
हूँ
फकीरा अब भी
वहीं मेरी कॉफ़ी देता
है
गिलेरिओं को बुला
कर खिलाता हूँ बिस्कुट
गिलेरियाँ मुझे शक
की नज़र से
देखती हैं
वो तेरे हाथों
का मस जानती
होंगी….
कभी कभी जब
उतरती है चील शाम
की छत से
थकी थकी सी
ज़रा देर लॉन में
रुक कर
सफेद और गुलाबी
मुसुन्ढ़े के पौधों
में घुलने लगती
है
के जैसे बर्फ
का टुकरा पिघलता
जाये व्हिस्की में
मैं स्कार्फ़ दिन का
गले से उतार
देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन
पहन के अब
भी मैं
तेरी महक में
कई रोज़ काट
देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन
टंगे हैं लॉन में अब
तक
न वो पुराने
हुए हैं
न उन का
रंग उतरा…
कहीं से कोई
भी सीवन अभी
नहीं उधड़ी।
--- गुलज़ार