संतला माता मंदिर - देहरादून |
कहा नहीं था अब न मिलेंगे कभी।
पर ऐसा कौन सा पल है जो तुमसे अलग करके जिया है मैंने।
एक वादी में झाँक के देखा तो तुम मिले।
एक सूरज को ढलते देखा तो तुम मिले।
एक नींद में सपना देखा तो तुम मिले।
एक नींद में सपना टूटा तो तुम मिले।
लहर किनारे से टकरायी तो तुम मिले।
कोई हंसा तो तुम और कोई रोया तो भी तुम।
मैंने तो कहा ही था कि अब न मिलेंगे।
पर तेरी याद का कोहरा इतना घना है,
कि कोई पल अनजाने में टकरा ही जाता है।
मैंने तो कहा ही था कि अब न मिलेंगे।
--- अतुल रावत
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